उपसर्ग ( prefix)
उपसर्ग वह शब्दांश होता है, जो शब्द के पूर्व में लगकर शब्द का अर्थ बदल देता है या उसके अर्थ में चमत्कार/विशेषता उत्पन्न कर देता है।
उपसर्ग लगने से अर्थ-परिवर्तन मुख्यतः दो रूपों में होता है— पहला, उपसर्ग के लगने से शब्द के अर्थ में उसी दिशा में विशेषता, तीव्रता उत्पन्न हो जाती है, दूसरा, उपसर्ग के लगने से शब्द का अर्थ विपरीत भाव प्राप्त कर लेता है।
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संस्कृत उपसर्ग (तत्सम उपसर्ग)
संस्कृत व्याकरण के अनुसार संस्कृत भाषा में कुल 22 उपसर्ग हैं। इनके अर्थ और उदाहरण दिए जा रहे हैं—
1. नि (बड़ा, विशेष, निषेधात्मक)
(i) बिना संधि किए हुए/ज्यों-के-त्यों
निकाय (संगठन-कोर्पोरेशन), निकृष्ट, निक्षेप (डाल देना), निखिल (संपूर्ण), निज (नि+ज-जन्म लेनेवाला), निदेशक, निधन, निधि (नि+धि = भंडार), निपट, निपात, निपुण, निबंध, नियंत्रण, नियम ( यम विचार), नियमित, नियोग, निरत (कार्यरत), निरूपण (नि+रूप+अन-प्रत्यय), निरोध (नि+रोध= रोकना), निलंबन, निवास, निवेश,निहित
(ii) यण संधि होने पर
न्यस्त (नि+अस्त), न्याय (नि+आय), न्यास (नि+आस), न्यून (नि+ऊन) ।
(iii) व्यंजन संधि होने पर
निषेध (नि+सेघ), निष्ठा (नि+स्था) |
(iv) प्रत्यय के प्रभाव से वृद्धि रूप
नैकट्य (नि+कट+य), नैदानिक (नि+दान + इक) ।
2. अनु (पीछे, समान)
(i) बिना संधि किए हुए/ज्यों-के-त्यों
अनुकरण, अनुगामी, अनुगृहीत, अनुचर, अनुज (अनु + ज), अनुज्ञप्ति (लाइसेंस), अनुज्ञा (अनुमति), अनुपूरक, अनुप्रास (अनु+प्र+आस), अनुबंध, , अनुमान, अनुयायी, अनुराग, , अनुवाद, अनुशासन,अनुसार, अनुस्वार ।
(ii) दीर्घ संधि होने वाले
अनूदित (अनु+ उद् + इत) ।
(iii) यण् संधि होने पर
अन्वय (अनु+अय), अन्वीक्षा (अनु + ईक्षा), अन्वेषक ( अनु + एषक), अन्वेषण (अनु+एषण) ।
(iv) व्यंजन संधि होने पर
अनुच्छेद (अनु + छेद), अनुष्ठान (अनु + स्थान) ।
(v) प्रत्यय के प्रभाव से वृद्धि रूप
आनुपातिक (अनुपात+इक), आनुषंगिक (अनु+संग+इक), आन्विक्षिकी (अनु + ईक्षा+इक + ई-तर्कशास्त्र) ।
3. प्रति (विपरीत, प्रत्येक, ओर)
(i) बिना संधि किए हुए/ज्यों-के-त्यों
प्रतिकार / प्रतीकार (प्रति+कार), प्रतिकूल, प्रतिघात / प्रतीघात (प्रति + घात), प्रतिज्ञा, , प्रतिध्वनि, प्रतिनिधि, प्रतिनियुक्ति (प्रति + नि + युक्ति), प्रतिबंध, प्रतिभा (भा=चमक), प्रतिमा (मा=रूप बनाना), , प्रतिवाद, प्रतिवादी, प्रतिशत, प्रतिहिंसा।
(ii) दीर्घ संधि होने पर
प्रतीक (प्रति + इक), प्रतीक्षा (प्रति + ईक्षा)।
(iii) यण संधि होने पर
प्रत्यक्ष (प्रति + अक्ष) (RAS-2019), प्रत्यपकार (प्रति + अप+कार), प्रत्यर्पण (प्रति+अर्पण किसी वस्तु के लेने के बदले कुछ लौटाना), प्रत्याशी (प्रति + आशी), प्रत्युत्तर (प्रति + उद्+तर), प्रत्युत्पन्न (प्रति + उद्+पन्न) = जो ठीक समय पर प्रस्तुत हो जाए), प्रत्युपकार (प्रति + उप + कार) = भलाई के बदले भलाई), प्रत्येक (प्रति +एक )
(iv) व्यंजन संधि होने पर
प्रतिषेध (प्रति+सेध=रोक), प्रतिष्ठा (प्रति+स्था),
प्रतिष्ठित (प्रति + स्थित ) ।
(v) प्रत्यय के प्रभाव से वृद्धि रूप
प्रातिनिधिक, प्रातिपादिक (प्रतिपद + इक), प्रात्यक्ष 6. परि (चारों ओर, पास) हए / ज्यों-के-त्यों (प्रत्यक्ष से संबंधित) |
4. अति (अधिक, परे)
(i) बिना संधि किए हुए/ ज्यों-के-त्यों
अतिक्रमण, , अतिव्याप्ति (अति+वि+आप्ति) (लक्ष्य से अधिक के समावेश होने का दोष), अतिसार (पतले दस्त) ।
(ii) दीर्घ संधि होने पर
अतींद्रिय (अति + इंद्रिय)
अतीत (अति + इत)
अतीव ( इति + इव)
(iii) यण् संधि होने पर
अत्याधुनिक (अति + आधुनिक),
अत्यावश्यक (अति+आ+वश्यक),
अत्युक्ति (अति + उक्ति) ।
(iv) प्रत्यय के प्रभाव से वृद्धि रूप
वृद्धिरूप का अर्थ है—इक, अ, इ, य, अयन आदि प्रत्ययों के प्रभाव से स्वर में वृद्धि अ आ, इ, ई, ए ऐ तथा उ, ऊ, ओ औ बन जाना,
जैसे :- आत्यंतिक (अति + अंत + इक-प्रत्यय)
5. आ (तक, इधर, से)
(i) बिना संधि किए हुए
आकार, आकाश (आ+काश – चमकना), आकृष्ट, आक्रमण, आचमन (आ+चमन), आचरण, आजानु (आ+जानु (घुटनों तक), आजीविका, आज्ञा, आतंक, आतप, आतप्त,आधार, आनंद (आ+नंद = हर्ष), आपत्ति (आ+पत्ति), आपात (आ+पात = गिरना), आमरण, आयात, आरक्त, आराधना, आरोहण, आलंबन, आसन्न (आ+सन्न = निकट)।
(ii) व्यंजन संधि होने पर
आच्छन्न (आ+छन्न=छिपा हुआ)
आच्छादन (आ+छादन),
6. अप (बुरा, विपरीत, अपवाद)
(i) बिना संधि किए हुए
अपकार, अपकीर्ति, अपभ्रंश, अपमान, अपयश, अपराध, (बदशक्ल), अपवर्तन (मार्ग से विचलन),अपव्यय (अप + वि + अय), अपशकुन, अपहरण।
(iii) दीर्घ संधि होने पर
अपांग (अप + अंग)
अपंग शब्द में अप उपसर्ग है।
(iii) गुण संधि होने पर
अपेक्षा (अप+ ईक्षा), अपेक्षित (अप + ईक्षित)
(iv) प्रत्यय के प्रभाव से वृद्धि रूप
आपराधिक (अप+राध+इक)
आवधिक (अव + घि+इक)
7. उप (पास, सहायक, छोटा)
(i) बिना संधि किए हुए/ज्यों-के-त्यों
उपचार, उपदेश,उपसर्ग , उपनिवेश (उप + नि+वेश= राष्ट्र), उपनिषद् (उप+नि+सद्), उपनेत्र, उपन्यास (उप + नि+आस), उपमा (उप+मा= तुलना करना), उपयोग, उपराम (विश्राम), उपलब्धि, , उपवास, , उपस्थिति, उपहार, उपमान ।
(ii) दीर्घ संधि होने पर
उपाधि (उप + आधि), ), उपाध्याय (उप + अधि+आय), उपायुक्त (उप + आ + युक्त), उपार्जन (उप+अर्जन), उपासना (उप + आसना),उपाध्यक्ष (उप + अधि+ अक्ष)
(iii) गुण संधि होने पर
उपेक्षा (उप + ईक्षा)
उपेंद्र (उप+ इंद्र - विष्णु)
(iv) प्रत्यय के प्रभाव से वृद्धि रूप
औपास्य (उप+आस+य= उपासना के योग्य),
औपनिवेशिक (उप + नि+वेश + इक )
8. अधि (ऊपर, अधिक)
(i) बिना संधि किए हुए/ज्यों-के-त्यों
अधित्यका (त्यका—पहाड़ के ऊपर की समतल भूमि), , अधिनियम (अधि+नि+यम), अधिमास (अधिक मास, मल मास), अधिशासी (ऊपर से देख-रेख करनेवाला), अधिपति,अधिसूचना ।
(ii) दीर्घ संधि होने पर
अधीक्षण (अधि+ ईक्षण),
अधीश (अधि + ईश ) |
(iii) यण संधि होने पर
अध्यापक (अधि+आ+पक)
अध्याय (अधि+आय)
(iv) व्यंजन संधि होने पर
अधिष्ठाता (अधि+स्थाता),
अधिष्ठान (अधि स्थान ।
(v) प्रत्यय के प्रभाव से वृद्धि रूप
आधिकारिक (अधिकार+इक),
आधिपत्य (अधि+पत+य-प्रत्यय),
आध्यात्मिक (अध्यात्म+इक)
9. परि (चारों ओर, पास)
(i) बिना संधि किए हुए/ ज्यों-के-त्यों
परिग्रह (संचय), परिजन, , परितोष, परिधि (वृत्त को घेरनेवाली गोल रेखा), परिवर्तन, परिवार, परिशिष्ट, परिश्रम, परिसर,परिचारिका, परिधान।
(ii) दीर्घ संधि होने पर
परीक्षण (परि + ईक्षण),
परीक्षा (परि + ईक्षा))
(iii) यण् संधि होने पर
पर्यंक (परि + अंक), पर्यवसान (परि + अव+सान), पर्याप्त (परि + आप्त) पर्यावरण (परि+आ+वरण), पर्यवेक्षण (परि+अव+ईक्षण),पर्युषण (परि + उषण = उपासना- जैनियों का एक पर्व) ।
(iv) व्यंजन संधि होने पर
परिणय (परि+नय), परिमाण (परि+मान), परिष्कार (परि+कार), परिष्कृत (परि+कृत)।
(v) प्रत्यय के प्रभाव से वृद्धि रूप
पारिजात (परिजात+अ), पारितोषिक (परितोष+इक), पारिभाषिक, पारिवारिक, पारिश्रमिक।
10. अव (नीचा, बुरा, हीन, उपयुक्त भी)
(i) बिना संधि किए हुए / ज्यों-के-त्यों
अवगत, अवगाहन (नहाना), अवचेतन, अवज्ञा (अब+ज्ञा), , अवतीर्ण, , अवधारणा, अवधि, अवनति, अवबोध,, अवरोध, अवरोह, अवलेह, अवलोकन, अवसाद (दुःख), अवगुंठन (घूँघट), अवस्था ।
(ii) दीर्घ संधि होने पर
अवांतर (अव + अंतर = बीच में)
अवाप्ति (अव+आप्ति - अक्वायर करना)
(iii) गुण संधि होने पर
अवेक्षण (अव+ ईक्षण निरीक्षण),
(iv) व्यंजन संधि होने पर
अवच्छिन्न (अव+छिन्न=अलग किया हुआ)
अवच्छेद (अव+छेद=खंड) ।
11. दुर् ( कठिन, बुरा, विपरीत)
दुर् उपसर्ग घोष ध्वनियों से पहले लगता है तथा दुस् उपसर्ग अघोष दंत्य ध्वनियों से पहले लगता है। अघोष तालव्य ध्वनियों से पहले दुश् और क, प, फ, व्यंजनों से पहले दुष् लगता है।
(i) दुर् (बिना-संधि के, र को छोड़कर शेष व्यंजनों से पहले)
दुर्गम, दुर्जेय, दुर्दशा, दुदत (दुर् + दांत = दुर्दमनीय), दुर्दिन, दुर्धर्ष (दुर् +घर्ष = जिसे वश में करना कठिन हो), दुर्बुधि, दुर्भेय, दुर्योधन (दुर् + योधन- जिससे युद्ध करना कठिन हो-वीर), दुर्लध्य (दुइ +लंघ्य), दुर्लभ (दुर्+लभ), दुर्व्यवहार (दुर् + वि + अव + हार)
(ii) दुर् (दुर् + स्वर)
दुरभिसंधि (दुर्+अभि+सम्+धि), दुराचार (दुर+आ+चार), दुरात्मा (दुर् + आत्मा), दूरम्य (दुर्+रम्य दुर्लभ सौंदर्य), दूराज (दुर्+राज= बुरा शासन ) |
(iv) प्रत्यय के प्रभाव से वृद्धि रूप
दौर्जन्य (दुर् + जन+य),
दौर्बल्य (दुर्+बल+य) ।
12. निर्, निस्
घोष ध्वनियों से पहले निर् तथा निस् उपसर्ग प्रयुक्त होता हैं
(i) निर् (निर्+व्यंजन) (बिना संधि के 'र' को छोड़कर शेष व्यंजनों से पहले)
निर्गुण, निर्दिष्ट (निर् + दिष्ट), निर्निमेष (निर् + नि + मेष आँख का न झपकना), निर्मम, निर्माता (निर् + माता), निर्मिति (निर् + मिति), निर्वाह, निर्विरोध (निर् + वि+ रोध)।
(ii) निर (निर्+स्वर)
निरंजन (निर् + अंजन = बिना कालिख या दोष का), निरंतर (निर् + अंतर), निरनुनासिक (निर् + अनु + नासिक), निरन्न (निर् + अन्न, बिना अन्न के), निरपराध (निर् + अप + राधी), निरभ्र (निर् + अभ्र = बिना बादल के, शुभ्र आकाश), निरर्थक (निर् + अर्थक), निरवलंब (निर् + अब + लंब), निरस्त (निर् + अस्त),निराकार (निर् + आ + कार), + अस्त्र), निराधार (निर् + आ + घार), निरापद (निर् + आ + पद = बिना संकट के), निरामय (निर् + आ + मय = नीरोग), निरामिष (निर् + आ + मिष = मांस), निरीह (निर् + ईह = इच्छा), निरुक्त (निर् + उक्त), निरुत्साह (निर् + उद् + साह), निरुत्साहित (निर् + उद् + साहित), निरुपम (निर् + उप + मा)
(iii) नी (निर्+र) व्यंजन संधि
नीरंध्र (निर्+रंध्र), नीरज (निर्+रज- मिट्टी रहित), नीरस (निर्+रस), नीरोग (निर्+रोग) (नीरज (कमल के अर्थ में) की संरचना है नीर+ज, यहाँ कोई उपसर्ग नहीं है) ।
(vi) निर् के साथ व्यंजन संधि
निर्णय (निर् + नय),
निर्माण (निर् + मान) ।
(v) प्रत्यय के प्रभाव से वृद्धि रूप
नैरंतर्य (निर्+अंतर+य)
नैराश्य (निर्+आशा+य)
नैर्मल्य (निर्+मल+य- निर्मलता)
13. दुस् (कठिन, बुरा, विपरीत) (दुः उपसर्ग नहीं होता)
(i) दुस् (दुस् + त, स,)
दुस्तर (दुस+तर), दुस्सह, दुस्साध्य (दुस्+साध्य), दुस्साहस (दुस्+साहस)1, दुस्स्वप्न।
(ii) दुः
दुःसह, दुःसाहस, दुःस्वप्न ।
(iii) दुश्– (दुस् +तालव्य अघोष व्यंजन (च, छ, श)
दुश्शासन (दुस् + शासन), दुश्शील (दुस् + शील)
(iv) दुः
दुःशासन, दुःशील
(v) दुष्– (दुस्+क, प, फ)
दुष्कर्म (दुस् + कर्म), दुष्काल, दुष्कृत्य (दुस् + कृत्य), दुष्परिणाम (दुस् + परि + नाम), दुष्प्रहार (दुस् + प्र + हार), दुष्प्राप्य (दुस् + प्र + आप्य),
14. निस् (बड़ा, विशेष, विपरीत)
अघोष तालव्य व्यंजन (च, श) से पहले निश्, क, प, फ से पहले निष् तथा दंत्य अघोष व्यंजनों (त, स) से पहले निस् होता है।
(i) निस् (निस्+अघोष दंत्य व्यंजन (त, स)
निस्तेज (निस् + तेज), निस्संकोच (निम्+सम्+कोच), निस्संदेह (निस्+सम् + देह), निस्सार, निस्स्वार्थ।
(ii) निः
निःसार, निःसीम, निःस्वार्थ
(iii) निश् (निस्+ अघोष तालव्य व्यंजन (च, छ, श)
निश्चय (निस् + चय), निश्चल, निश्चिंत (निस् + चिंत), निश्चित (निस् + चित),निश्छल, निश्शुल्क (निस्+शुल्क), निश्श्वास (निस् + श्वास) ।
(iv) निः
निःशुल्क, निःश्वास
(v) निष् (निस्+क, प, फ)
निष्कंटक (निस् + कंटक), निष्काम (निस् + काम), निष्कासन (निस + कासन -बाहर करना), निष्फल (निस् + फल), निष्पक्ष (निस्+पक्ष),
(vi) प्रत्यय के प्रभाव से वृद्धि रूप
नैयायिक (नि+आय+इक)
नैष्क्रमण (निस्+क्रमण+अ) (घर से बाहर ले जाने का कृत्य)
15. अभि- (सामने, पास)
(i)बिना संधि किए हुए/ज्यों-के-त्यों
अभिज्ञ (अभि + ज्ञ), अभिधा (अभि +धा= धारण करनेवाला वाच्यार्थ), अभिन्यास (अभि+नि+आस) (ले-आउट-किसी घर आदि -शब्द का का विस्तार करना), अभिप्राय, अभिभाषण, अभिमान, अभिमुख, अभियंता, अभियान, अभिराम, अभिलाषा, अभिवादन, अभिशंसा।
(ii) दीर्घ संधि होने पर
अभीप्सित (अभि + ईप्सित),
अभीष्ट (अभि+इष्ट) ।
(iii) यण संधि होने पर
अभ्यंतर (अभि + अंतर) अभ्यागत (अभि+आ+गत), अभ्यास (अभि + आस), अभ्युत्थान (अभि + उद् + स्थान), अभ्युदय (अभि+उद्+अय) ।
(iv) व्यंजन संधि होने पर
अभिषेक (अभि + सेक) ।
(v) प्रत्यय के प्रभाव से वृद्धि रूप
आभिजात्य (अभिजात+य),
आभिधानिक (अभिधान + इक),
आभ्यंतरिक (अभ्यंतर + इक) ।
16. परा (विपरीत, पीछे, अधिक)
(i) बिना संधि किए हुए/ज्यों-के-त्यों
पराक्रम, पराजय (परा + जय), परामर्श, परावर्तन पराविद्या, परास्त (परा + अस्त) ।
(ii) प्रत्यय के प्रभाव से वृद्धि रूप
पाराशर (परा + शर+अ- पराशर के पुत्र) ।
17. अपि (निश्चय, किंतु, भी)
(i) बिना संधि किए हुए/ज्यों-के-त्यों
अपिधान (ढक्कन), अपिहित (ढका हुआ) ।
18. वि (विशेष, भिन्न, अभाव)
(i) बिना संधि किए हुए/ज्यों-के-त्यों
विकार, विकास, विकिरण (वि+किरण), विकीर्ण (वि+कीर्ण = फैला हुआ), विख्यात, विग्रह, विघटन, वितान (वि+तान=तंबू), वितृष्णा (वि+तृष्णा), विदग्ध (वि+दग्ध), विद्रोह, विधवा (वि+धवा= पति), विधान, विध्वंस, विनय, विनाश, विनीत, विन्यास (वि+नि+आस), विपर्यय (वि+परि+अय), विपाक, विपुल (वि+पुल = घना), विप्रलंभ (वि+प्र+लंभ = वियोग), विप्लव, विभ्रम, विरस, विराम (वि+राम= अंत), विरुद (वि+रुद=प्रशंसा), विरुद्ध (वि+रुद्ध=प्रतिकूल), विरेचन (वि+रेचन=दस्त लाना), विलोम (वि+लोम), विवाह (वि+वाह = भार वहन करना), विशेष, विश्रुत (वि+श्रुत = बहुत सुना हुआ)।
(ii) दीर्घ संधि होने पर
वीक्षक (वि+ ईक्षक)
वीक्षण (वि+ईक्षण)
(iii) यण् संधि होने पर
व्यग्र (वि + अग्र), व्यक्ति (वि+अक्ति), व्यभिचार वि + अभि + चार), व्यय (वि+अय), व्यवसाय (वि+अव+साय), व्यष्टि (वि+अष्टि इकाई), व्यस्त (वि+अस्त), व्याकरण = (वि+आ+करण), व्याकुल (वि+आ+कुल), व्याधि (वि+आधि) ।
(iv) व्यंजन संधि होने पर
विषण्ण (वि+सन्न = दुखी), विषम (वि+सम), विषय (वि+सय), विष्पंदन (वि+स्पंदन= कंपन) ,विच्छेद (वि+छेद),विषाद (वि+साद)।
(v) प्रत्यय के प्रभाव से वृद्धि रूप
वैचारिक (वि+चार+इक), वैज्ञानिक, वैदेशिक, वैध (वि+धि+अ), वैधव्य (वि+धवा-पति+य), वैयक्तिक (वि+अक्ति+इक), वैयाकरण (वि+आ+करण+अ), वैराग्य (वि+राग+य), वैवाहिक (वि+वाह+इक), वैशेषिक (वि+शेष + इक) ,वैकल्पिक (वि+कल्प+इक),
19. उद् (ऊपर, श्रेष्ठ)
(संस्कृत के मूल ग्रंथों में उद् उपसर्ग है, उत् नहीं। उत् तो उद् का संधि रूप है।)
(i) उद् (उद्+घोष व्यंजन) बिना संधिवाले रूप
उद्घोष (उद् + घोष) उद्घोषणा (उद् + घोषणा) , उद्देश्य (उद् + देश्य), उद्धत (उद् + हत),उद्धरण (उद् + हरण), उद्धृत (उद् + हृत), उद्बोधन (उद् + बोधन), उद्भव (उद्+ भव), उद्दीप्त (उद् + दीप्त)
(ii) उत् (उद्+अघोष व्यंजन)
संस्कृत की व्यंजन संधि की प्रक्रिया से ‘उद्’ उपसर्ग का घोष 'द' इसके आगे अघोष व्यंजन आने पर अघोष 'त' में बदल जाता है इसलिए यह 'उत्' बन जाता है
उत्कर्ष (उद् + कर्ष), उत्कृष्ट (उद् + कृष्ट), उत्खनन (उद् + खनन), उद्गार (उद् + गार), उत्ताप (उद् + ताप), उत्तीर्ण (उद् + तीर्ण), उत्तेजित (उद् + तेजित), उत्थान (उद् + स्थान) , उत्पन्न (उद् + पन्न), उत्पादन (उद् * पादन), उत्प्रेरणा (उद् + प्रेरणा), उत्फुल्ल (उद् + फुल्ल), उत्सर्ग (उद् + सर्ग),उत्सव (उद् + सव), उत्तम (उद् + तम),उत्साह (उद् + साह), उत्तुंग (उद् + तुंग = ऊँचा) ,उत्थापन (उद्+स्थापन)।
(iii) उच् (उद् + च, छ, श तालव्य व्यंजन)
उच्छिष्ट (उद् + शिष्ट), उच्छेद(उद्+छेद), उच्छ्वास (उद्+ श्वास), उच्चय (उद् + चय), उच्चारण (उद् + चारण) ,उच्छलन (उद् + शलन),उच्छृंखल (उद् + शृंखल) ।
(iv) उज् (उद्+ज) ,
उज्ज्वल (उद् + ज्वल),उज्जयिनी (उद् + जयिनी)।
(v) उड् (उद्+ड)
उडड्यन (उद्+डयन), उड्डीन (उद् + डीन- उड़ा हुआ) ।
(vi) उल् (उद्+ल)
उल्लास (उद् + लास), उल्लेख (उद् + लेख), उल्लंघन (उद् + लंघन), ।
(vii) उन् (उद्+न/म)
उन्निद्र (उद् + निद्र), उन्मत्त (उद् +मत्त), उन्मीलन (उद् + मीलन), उन्मुख (उद् + मुख), उन्मूलन (उद् + मूलन), उन्मेष (उद् + मेष), उन्नति (उद्+ नति),उन्माद (उद् + माद) ।
(viii) उद् (उद्+स्वर)
उदय (उद् + अय), उदार (उद् + आर), उदास (उद् + आस),उदाहरण (उद् + आ + हरण), उदर (उद् + अर), ।
20. सु (अच्छा, सरल, विशद-साफ़)
(i) बिना संधि किए हुए/ज्यों-के-त्यों
सुगंध, सुगति, सुदिन, सुदूर, सुदृढ़, सुनिश्चय (सु+निस्+चय), सुपरिचित (सु+परि+चित), सुपाच्य, सुपुत्र, , सुरति (पति-पत्नी का गहरा प्रेम), सुलभ, सुविख्यात (सु+वि+ख्यात), सुविधा (सु+वि+धा), सुव्यवस्थित (सु + वि + अव + स्थित), सुशिक्षित, सुशील, सुहृद, सुअवसर (सु+अव+सर), सुकर्म,सुचरित्र, सुजन ।
(ii) यण् संधि होने पर
स्वयं (सु+अयं), स्वल्प (सु + अल्प), स्वस्ति (सु + अस्ति), स्वागत, स्वच्छ (सु+अच्छ),(सु+आ+गत)
(iii) व्यंजन संधि होने पर
सुषमा (सु+समा), सुषुप्त (सु+सुप्त), सुष्ठु (सु+स्थु-अच्छा) ।
(iv) प्रत्यय के प्रभाव से वृद्धि रूप
सौजन्य (सु+जन+य), सौभाग्य (सु+भाग+य), सौमनस्य (सु+मनस्+य),(सु+मित्र+अ) ।सौमित्र
पढ़ें:-
वाच्य(voice) कर्तृ वाच्य, कर्म वाच्य, भाव वाच्य
21. सम् (अच्छी तरह, शुद्ध, पूर्ण, साथ)
(i) बिना संधि किए हुए/ज्यों-के-त्यों
सम् (सम्+म) - सम्मान, सम्मुख, सम्मोह।
(ii) सम् (सम्+स्वर)
समधिक (सम् + अधिक बहुत अधिक), , समर्थ (सम् + अर्थ), समर्पण (सम् + अर्पण), समाख्या (सम् + आ + ख्या = यश), समाचार (सम् + आ + चार), समाज (सम् + आज), समादर (सम् + आ + दर), समाधान (सम् समान (सम् + आन), समापन (सम् + आपन), समायोजन (सम् + आ + योजन), + आ + धान), समारंभ (सम् + आ + रंभ), समारोह (सम् + आ + रोह), समाविष्ट (सम् + आ + विष्ट), समास (सम् + आस), समीक्षा (सम् + ईक्षा), समुच्चय (सम् + उद् + चय), समूह (सम् + ऊह), समृद्ध (सम् + ऋद्ध = खुशहाल), समग्र (सम् + अग्र), समागम (सम् + आ + गम)।
(iii) सं (सम् + व्यंजन 'न' को छोड़कर)
संकीर्ण (सम् + कीर्ण), संक्षेप संक्षेपण (सम् + क्षेपण), संख्या (सम् +ख्या), संगम (सम् + गम), संगीत (सम् + गीत), संग्रह (सम् + ग्रह), संघटन (सम् + घटन), संचय (सम् + चय), संचार (सम् + चार), संचालन, संजय (सम् + जय), संज्ञा (सम् + ज्ञा), संतान (सम् + तान), संतोष (सम् + तोष), संदग्ध (सम् + दग्ध जला हुआ), संदिग्ध (सम् + दिग्ध), संदेश (सम् + देश), संदेह (सम् + देह), संदेहास्पद (सम् + देहास्पद), संधान + धान), संपुट (अंजलि), संपूर्ण, संप्रेषण (सम् + प्र + इषण), संबंध, संभव, संभाषण, संयंत्र (सम् + यंत्र), संयम (सम् + यम), संलग्न (सम् + लग्न), संवहन (सम् + वहन), संवाद, संविधान (सम् + वि + धान), संवृत (ढका हुआ), संवृत्त (जो घटित हुआ हो), संवृद्धि, संशय (सम् + शय), संसर्ग (सम् + सर्ग), संसार (सम् + सार), संस्करण (सम् + करण), संस्कार (सम् + कार), संस्कृति (सम् + कृति), संहार (सम् + हार),संकर (सम् + कर),संगत (सम् + गत),।
(iv) सन् (सम्+न)
सन्निवेश (सम् + नि+वेश), सन्न्यास (सम् + नि+ आस) |
(v) प्रत्यय के प्रभाव से वृद्धि रूप
सांविधानिक (सम् + वि + धान+इक), सांसारिक ( सम् + सार + इक), सांस्कारिक ,(सम् + कार + इक), सांस्कृतिक (सम् + कृति+इक), सामाजिक (समु+आज+इक), सामुदायिक (सम् + उद् + आय+इक), सामूहिक (सम्+ऊह+इक) ।
22. प्र (आगे, अधिक, विशिष्ट)
(i) बिना संधि किए हुए/ज्यों-के-त्यों
प्रकीर्ण (फुटकर), प्रकृति, प्रकोप, प्रक्रम, प्रखर ( प्र + खर तेज), प्रगति, प्रगाढ़, प्रगीत, प्रचार, प्रचुर, प्रताप, प्रदान, प्रपंच, प्रपौत्र, प्रबंध, प्रबल, प्रबुद्ध, प्रभाव, प्रभु ( प्र + भू = उत्पन्न होना), प्रमाद, प्रमुख, प्रमेय, प्रयास (प्र + यास = यत्न), प्रयोग, प्रलय, प्रवचन, प्रवीण (प्र+वीन= वीणा), प्रशमन (ध्वस्त करना), प्रश्रय, प्रसन्न, प्रसव ( प्र + सव), प्रसिद्ध, प्रस्तावना ( प्र +स्तावना = आरंभ), प्रस्तुत (प्र+स्तुत = तैयार), प्रस्थान, प्रहसन ( प्र + हसन ) ।
(ii) दीर्घ संधि होने पर
प्रार्थी (प्र+अर्थी=इच्छुक), प्राचार्य (प्र+आ+चार्य), प्राध्यापक (प्र+अघि + आ + पक), प्राप्त ( प्र + आप्त), प्रारब्ध (प्र+आ+रब्ध पूर्व जन्म के कर्म) ।
(iii) गुण संधि होने पर
प्रेषक ( प्र + इषक), प्रेषण ( प्र + इषण), प्रोज्ज्वल (प्र+उद्+ज्वल), प्रोत्साहन (प्र + उद्+साहन), प्रोन्नत ( प्र + उद्+नत) ।
(iv) व्यंजन संधि होने पर
प्रच्छन्न (प्र + छन्न), प्रणति ( प्र + नति), प्रणयन ( प्र + नयन), प्रणीत (प्र+नीत),प्रमाण ( प्र + मान) |
(v) प्रत्यय के प्रभाव से वृद्धि रूप
प्राकृतिक (प्र+कृति+इक), प्राचार्य (प्र + आ + चार+य), प्रादेशिक, प्राधान्य (प्र+धान+य), प्राबल्य (प्र+बल+य प्रत्यय), प्रामाणिक (प्र+मान+इक), प्रायोगिक, प्रारंभिक, प्राविधिक ( प्र + विधि + इक), प्रासंगिक (प्र+संग+इक प्रत्यय)
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